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Jaun Eliya

उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या

मेरी हर बात बे-असर ही रही
नक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या

मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है ख़ानदान में क्या

ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से
आ गया था मेरे गुमान में क्या

दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुत
ख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या

वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मैं तेरी अमान में क्या

यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या

ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
एक ही शख़्स था जहान में क्या
– जान एलिया

बनारस

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थकान के बाद की नींद को आरामदायक बिस्तर की जरूरत नहीं होती। जहा एक तरफ लोग नए साल के स्वागत के लिए सड़कों पर घूम कर जश्न मना रहे थे वहीं मुझे कुछ लोग सड़क के किनारे ऐसे सोते मिले। 10 डिग्री से भी कम की सर्दी में लोगों को सोता देखकर मन व्यथित हो उठा।हमारी सरकारें कितना भी दावा करले पर जो गरीब है वो गरीब ही रह जाता है ये बात और है कि अमीर और अमीर होते जाते है।
बात 31 दिसंबर 2017 की है। हाथ में कैमरा था तो तस्वीर भी ले ली। वैसे मै भी गया था बनारस के घाट की मनमोहक तस्वीरें कैद करने पर मेरे द्वारा ली गई सारी तस्वीरों पर ये तस्वीर भारी पड़ गई।
मुनव्वर राना जी ने सही कहा था कि
सो जाते है फुटपाथ पर अखबार बिछा कर,
मजदूर कभी नींद की गोलियां नहीं खाते।

गजल का शेर

दुनिया की मसरूफियत में तो अब वो चेहरा याद नहीं,
लिखता भी हूं उसी पर और कहता हूं कि वो याद नहीं।
– हिमांशु सिंह

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